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कांटेस्ट : बस कहने का अवसर दे दो

Ankesh_writes
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बस कहने का अवसर दे दो

तज मौन की सीमा को कह दूँगा
अंतर्मन के हर एक राज़
बस कहने का अवसर दे दो

माना अब तक चुपचाप खड़ा था
दूर नही मैं पास खड़ा था
सम्मुख मेरे तुम थे प्रियवर
फिर भी मैं खामोश खड़ा था
उन गहरी सांसो को तज कर
अंतर्मन की बात कहूगा
बस कहने का अवसर दे दो

मुझको शब्दो का ज्ञान नही है
संज्ञा की पहचान नही है
स्वरलहरी से में अनजाना
सुर ताल लय का ध्यान नही है
स्वछंद विचारो की माला से

प्रियवर तेरा श्रृंगार करूगा

बस कहने का अवसर दे दो

माना मेरी राह नई है
भोतिक ऐश्वर्य यहाँ नही है

कलाप्रेमी हूँ स्वप्न  सजाता

मुझे सृष्ठी का ध्यान नही है
जीवन की अनमोल धरोहर
स्वप्नो को तुझ पर अर्पित कर दूँगा
बस कहने का अवसर दे दो

माना समय अब   क्षणिक   शेष है

माना समय अब   क्षणिक   शेष है

आने वाला हर पल विशेष है
नश्वर जीवन की सांसो को
आखिर कब तक रोक सकूंगा
लेकिन प्रियवर तेरे कहने तक
मैं बस यु ही मौन रहूँगा
बस कहने का अवसर दे दो
बस कहने का अवसर दे दो

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